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विसर्जन / महादेवी वर्मा

489 bytes added, 18:46, 19 सितम्बर 2009
उन्हीं मेरी भूलों पर प्यार!
गये तब से कितने युग बीत
हुए कितने दीपक निर्वाण!
नहीं पर मैंने पाया सीख
तुम्हारा सा मनमोहन गान।
 
नहीं अब गाया जाता देव!
थकी अँगुली हैं ढी़ले तार
विश्ववीणा में अपनी आज
मिला लो यह अस्फुट झंकार!
</poem>
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