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निगाहों में वो हल कई मसायले-हयात<ref>जीवन की समस्याओं</ref> के
वो गेसूओं के ख़म कई माआमिलात मआमिलात के ।
हमारी उँगलियों में धड़कने हैं साज़े - दह्र की
कहाँ से हाथ लाइये इन्हे उठाने के लिये
हिजाब - दर - हिजाब जल्वे हैं त‍अय्युरात त‍अय्युनात के।
किताब में ये दर्सयात ढूँढना फ़ुज़ूल है
उन अँखड़ियों से सीख कुछ रमूज़ कुफ़्रियात के।
इन्ही में अपने ख़तो-खाल<ref>चेहरा-मोहरा</ref> देखती है ज़िन्दगी
ये आबो-ताबे-शेर हैं कि आइने हयात के।
तमाम उम्र इश्क़ का जवाज़ ढूँढते रहे
ये अह्‌ले-रस्म हो रहे इन्ही तकल्लुफ़ात के।
क़लम की चंद जुंबिशों से और मैंने क्या किया
यही कि खुल गये हैं कुछ रमूज़-से हयात के।
उफ़ुक़ से ता उफ़ुक़ ये क़ायनात महवे-ख़ाब थी
न पूछ दे गये हैं क्या मुझे वो लमहे रात के।
 
नमाज़ शाएरी है और इमामे-फ़न ’फ़िराक़’ है
मकूअ<ref>झुकना</ref> और सुजूद<ref>सिजदा</ref> ज़ीरो-बम हैं सौतियात<ref>ध्वनिशास्त्र</ref> के।
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