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तुम्हारा लौह चक्र आया / हरिवंशराय बच्चन
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07:05, 29 सितम्बर 2009
टूट पिसे, मरु-सिसका-कण के
रूप उड़े, कुछ
घुआँ
घुवाँ
-
घुआँ
घुवाँ
-सा अंबर में छाया!
तुम्हारा लौह चक्र आया!
अचरज से निज मुख फैलाया,
दंत-
चिन्ह
चिह्न
केवल मानव का जब उस पर पाया!
तुम्हारा लौह चक्र आया!
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