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जानकर अनजान बन जा / हरिवंशराय बच्चन
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20:33, 29 सितम्बर 2009
पूछ मत
आराध्य
आराध्य
कैसा,
जब कि पूजा-भाव उमड़ा;
पथ मिला, मिट्टी सिधारी,
कल्पना
कल्पना
की वंचना से
सत्य से अज्ञान बन जा।
किंतु होना, हाय, अपने आप
हतविश्वास
हत्विश्वास
कब तक?
अग्नि को अंदर छिपाकर,
हेमंत जोशी
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