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|संग्रह=आकुल अंतर / हरिवंशराय बच्चन
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<poem>
चाँद-सितारों, मिलकर गाओ!
चाँद-सितारोंसितारे, मिलकर बोले,
कितनी बार गगन के नीचे
प्रणय-मिलना मिलन व्यापार हुआ है,
कितनी बार धरा पर प्रेयसि-
प्रियतम का अभिसार हुआ है!
चाँद-सितारोंसितारे, मिलकर बोले।
चाँद-सितारों, मिलकर राओरोओ!
आज अधर से अधर अलग है,
आज बाँह से बाँह अलग
चाँद-सितारों, मिलकर रोओ!
चाँद-सितारोंसितारे, मिलकर बोले,
कितनी बार गगन के नीचे
अटल प्रणय का बंधन टूटे,
कितनी बार धरा के ऊपर
प्रेयसि-प्रियतम के प्राण प्रण टूटे?चाँद-सितारोंसितारे, मिलकर बोले।
</poem>