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सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,<br>
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी,<br>
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,<br>
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।<br><br>
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।<br><br>
कानपुर कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,<br>
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,<br>
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,<br>
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।<br><br>
अश्रुपूर्णा अश्रुपूर्ण रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,<br>
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,<br>
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।<br><br>
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