|संग्रह=ताप के ताये हुए दिन / त्रिलोचन
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सीधी है भाषा बसन्त की
कभी आंख आँख ने समझी कभी कान ने पायीपाई
कभी रोम-रोम से
प्राणों में भर आयीआई
और है कहानी दिगन्त की
नीले आकाश में
नयी नई ज्योति छा गयीगई
कब से प्रतीक्षा थी
वही बात आ गयीगई
एक लहर फैली अनन्त की ।
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