जनविजय जी! मैंने ’माखनलाल चतुर्वेदी’ जी के संग्रह ’हिम तरंगिनी’ का टंकण पूरा कर लिया है। अब ’निराला’जी की ’अनामिका’ टंकित करने जा रहा हूँ। सादर - [[धर्मेन्द्र कुमार सिंह]]
जनविजय जी! अगर एक कविता दो संग्रहों में हो तो क्या करेंगें। मैंने एक जुगाड़ तो किया है। देखें [[प्रेयसी / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"]]। पर एक अच्छा समाधान होना चाहिए इस समस्या का। कृपया सहायता करें। सादर - [[धर्मेन्द्र कुमार सिंह]]