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पद

No change in size, 12:07, 10 अक्टूबर 2009
पद काव्य रचना की गेय शैली है। इसका विकाश विकास लोकगीतों की परंपरा से माना जाता है। यह मात्रिक छन्द की श्रेणी में आता है। प्राय: पदों के साथ किसी न किसी राग का निर्देश मिलता है। पद विशेष को सम्बन्धित राग में ही गाया जाता है। "टेक" इसका विशेष अंग है। हिन्दी साहित्य में पद शैली की दो परम्पराएँ मिलती हैं। एक सन्तों के "सबदों" की दूसरी कृष्णभक्तों की पद-शैली है, जिसका आधार लोकगीतों की शैली होगा।
मध्यकाल में भक्ति भावना की अभिव्यक्ति के लिए पद शैली का प्रयोग हुआ। [[सूरदास]] का समस्त काव्य-व्यक्तित्व पद शैली से ही निर्मित है। "सूरसागर" का सम्पूर्ण कवित्वपूर्ण और सजीव भाग पदों में है।