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भर देते हो / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
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14:49, 10 अक्टूबर 2009
मेरे अन्तर में आते हो, देव, निरन्तर,<br>
कर जाते हो व्यथा-
भाल लधु
भार लघु
<br>
बार-बार कर-कंज बढ़ाकर;<br><br>
हेमंत जोशी
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