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ठूँठ / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
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20:33, 10 अक्टूबर 2009
कुसुम से काम के चलते नहीं हैं तीर,
छाँह में बैठते नहीं पथिक आह भर,
झरते नहीं यहाँ दो प्रणयियों
ए
के
नयन-तीर,
केवल वृद्ध विहग एक बैठता कुछ कर याद।
</poem>
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