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अन्तर में, दो जो चाहे, हो बिन्दु सिन्धु उसका निःसार।
ब्रह्म और परमाणु-कीट तक, सब भूतों का है आधार
एक प्रेममय, प्रिय, इन सबके चरणों में दो तन-मन वार!
बहु रूपों में खड़े तुम्हारे आगे, और कहाँ हैं ईश?
व्यर्थ खोज। यह जीव-प्रेम की ही सेवा पाते जगदीश।*
 
 
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स्वामी विवेकानन्द जी के ’सखार प्रति’ का अनुवाद।
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