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आजाद / सुमित्रानंदन पंत

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|रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत
}}
पैगम्‍बर {{KKCatKavita}}<poem>पैगम्बtर के एक शिष्‍य शिष्य ने<br>पूछा, 'हजरत बंदे को शक<br>है आजाद कहां तक इंसा<br>दुनिया में,पाबंद कहां तक?'<br>'खड़े रहो!' बोले रसूल तब,<br>'अच्‍छाअच्छा, पैर उठाओ उपर'<br>'जैस हुक्‍महुक्मा!' मुरीद सामने<br>खड़ा हो गया एक पैर पर!<br><br>
'ठीक , दूसरा पैर उठाओ '<br>बोले हंस कर नबी फिर तुरत,<br>बार बार गिर, कहा शिष्‍य शिष्य ने<br>'यह तो नामुमकिन है हजरत'<br><br>
'हो आजाद यहां तक, कहता<br>तुमसे एक पैर उठ उपर,<br>बंधे हुए दुनिया से, कहता<br>पैर दूसरा अड़ा जमीं पर!' -<br>पैगम्‍बर पैगम्बसर का था यह उत्‍तरउत्तर! <br><br/poem>
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