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वसंत / सुमित्रानंदन पंत

44 bytes removed, 06:50, 13 अक्टूबर 2009
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}}
{{KKCatKavita}}<poem>चंचल पग दीपशिखा के धर <br> गृह, मग़, वन में आया वसंत <br> सुलगा फागुन का सूनापन <br> सौन्दर्य शिखाओं में अनंत <br><br>
सौरभ की शीतल ज्वाला से <br> फैला उर उर में मधुर दाह <br> आया वसंत, भर पृथ्वी पर <br> स्वर्गिक सुंदरता का प्रवाह <br><br>
पल्लव पल्लव में नवल रूधिर <br> पत्रों में मांसल रंग खिला <br> आया नीली पीली लौ से <br> पुष्पों के चित्रित दीप जला <br><br>
अधरों की लाली से चुपके <br> कोमल गुलाब से गाल लजा <br> आया पंखड़ियों को काले- <br> पीले धब्बों से सहज सजा <br><br>
कलि के पलकों में मिलन स्वप्न <br> अलि के अंतर में प्रणय गान <br> लेकर आया प्रेमी वसंत <br> आकुल जड़-चेतन स्नेह प्राण <br><br/poem>
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