Changes

|संग्रह= गुंजन / सुमित्रानंदन पंत
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
क्या मेरी आत्मा का चिर धन ?
मैं रहता नित उन्मन, उन्मन !
क्या मेरी आत्मा का चिर धन ?<br>प्रिय मुझे विश्व यह सचराचर, मैं रहता नित उन्मनतृण, उन्मन !<br><br>तरु, पशु, पक्षी, नर, सुरवर, सुन्दर अनादि शुभ सृष्टि अमर;
प्रिय मुझे विश्व यह सचराचरनिज सुख से ही चिर चंचल मन,<br>तृणमैं हूँ प्रतिपल उन्मन, तरु, पशु, पक्षी, नर, सुरवर,<br>सुन्दर अनादि शुभ सृष्टि अमर;<br><br>उन्मन।
निज सुख से ही चिर चंचल मन,<br>मैं हूँ प्रतिपल उन्मन, उन्मन।<br><br> मैं प्रेम उच्चादर्शों का,<br>संस्कृति के स्वर्गिक-स्पर्शों का,<br>जीवन के हर्ष-विमर्षों का;<br><br>
लगता अपूर्ण मानव-जीवन,<br>मैं इच्छा से उन्मन, उन्मन।<br><br>
जग-जीवन में उल्लास मुझे,<br>नव आशा; नव अभिलाष मुझे;<br>ईश्वर पर चिर विश्वास मुझे;<br><br>
चाहिए विश्व को नव जीवन<br>
मैं आकुल रे उन्मन उन्मन !
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits