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ग्राम कवि / सुमित्रानंदन पंत

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{{KKRachna
|रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत
|संग्रह=ग्राम्‍या ग्राम्यान / सुमित्रानंदन पंत
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<poem>
यहाँ न पल्लव वन में मर्मर,
यहाँ न मधु विहगों में गुंजन,
जीवन का संगीत बन रहा
यहाँ अतृप्त हृदय का रोदन !
यहाँ न पल्लव वन नहीं शब्दों में मर्मरबँधती आदर्शों की प्रतिमा जीवित, <br> यहाँ न मधु विहगों व्यर्थ है चित्र गीत में गुंजन, <br>जीवन का संगीत बन रहा <br>यहाँ अतृप्त हृदय का रोदन सुंदरता को करना संचित !<br><br>
यहाँ नहीं शब्दों में बँधती <br>धरा का मुख कुरूप है, आदर्शों की प्रतिमा जीवितकुत्सित गर्हित जन का जीवन, <br>यहाँ व्यर्थ है चित्र गीत में<br> सुंदरता को करना संचित !<br><br>का मूल्य वहाँ क्या जहाँ उदर है क्षुब्ध, नग्न तन ?-
यहाँ धरा का मुख कुरूप हैजहाँ दैन्य जर्जर असंख्य जन पशु-जघन्य क्षण करते यापन, <br> कुत्सित गर्हित जन का जीवनकीड़ों-से रेंगते मनुज शिशु, <br>सुंदरता का मूल्य वहाँ क्या <br> जहाँ उदर अकाल वृद्ध है क्षुब्ध, नग्न तन ?-<br><br>यौवन !
जहाँ दैन्य जर्जर असंख्य जन <br>पशु-जघन्य क्षण करते यापन, <br>कीड़ों-से रेंगते मनुज शिशु, <br>जहाँ अकाल वृद्ध है यौवन !<br><br> सुलभ यहाँ रे कवि को जग में<br>युग का नहीं सत्य शिव सुंदर, <br> कँप कँप उठते उसके उर की <br>
व्यथा विमूर्छित वीणा के स्वर !
</poem>
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