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चाहो तो तुम बुलाओ / रमा द्विवेदी

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{{KkGlobal}}{{KK Rachna||रचनाकार=रमा द्विवेदी}}
 
तेरी राह में खड़े,हैं चाहो तो तुम बुलाओ। <br>
चाहो तो तुम पुकारो,चाहो तो न बुलाओ॥ <br><br>
तुमने बनाया दासी,तुमने बनाया वनवासी, <br>
तुमने बनाया पत्थर,तुमने बनाया देवी।<br>
अब और क्या बनें हम, चाहो तो तुम बताओ?<br>
तेरी राह में खड़े हैं,चाहो तो तुम बुलाओ॥<br><br>
तेरे दिए गमों को पीते रहे हैं ऐसे<br>,
मीरा ने हँसते-हँसते विष को पिया था जैसे।<br>
अब और क्या सज़ा है, चाहो तो तुम सुनाओ?<br>
तेरी राह में खड़े हैं चाहो तो तुम बुलाओ॥<br><br>
कभी तुमने गले लगाया,कभी तुमने हाथ छुड़ाया,<br>
कभी तुमने साथ निभाया,कभी तुमने स्वांग रचाया।<br>
अब और क्या बचा है,चाहो तो तुम बताओ?<br>
तेरी राह में खड़े हैं,चाहो तो तुम बुलाओ॥<br><br>
तेरे ही वास्ते हम, मिटते रहे हैं हरदम,<br>
फिर भी वफ़ा न की तुमने,करते रहे जफ़ा तुम।<br>
अब और क्या करोगे, चाहो तो तुम बताओ?<br>
तेरी राह में खड़े हैं, चाहो तो तुम बताओ॥<br><br>
इस युग से पूछते हैं,कब तक रहेंगे शापित,<br>
हम खुद को ढूँढ़ते हैं,अपनों के बीच अब तक।<br>
अब और न सहेंगे चाहो तो भूल जाओ।<br>
तेरी राह में खड़े हैं,चाहो तो तुम बुलाओ॥<br><br> राह में खड़े,हैं चाहो तो तुम बुलाओ। <br>
चाहो तो तुम पुकारो,चाहो तो न बुलाओ॥ <br><br>
तुमने बनाया दासी,तुमने बनाया वनवासी, <br>
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