स्वर - अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ अं अः
ये स्वर हैं। स्वरों की मात्राएँ होती हैं जिनका प्रयोग व्यंजनों में किया जाता है। व्यंजन वर्गों में होते हैं। उदाहरण के लिए क ख ग घ ङ को वर्ग कवर्ग कहा जाता है और च छ ज झ ञ चवर्ग यानि हर वर्ग का नाम अपने वर्ग के पहले व्यंजन पर होता है। हर वर्ग का अंतिम व्यंजन अनुनासिक होता है। यानि उसका उच्चारण करने में नासिका (नाक) का सहयोग लेना पड़ता है। संसकृत के एक नियम के अनुसार अनुनासिक व्यंजनों को बिंदु में बदला जा सकता है। हम कविता कोश में इसी नियम का पालन करते हुए अनुनासिक व्यंजनों के लिए बिंदी का प्रयोग करेंगे। यानि बिन्दी की जगह बिंदी कङ्गन की जगह कंगन, चंञ्चल की जगह चंचल इस प्रकार लिखेंगे। अनुनासिक के लिए चंद्र बिंदु का प्रयोग भी होता है। जैसे गाँव में। लेकिन जिन व्यंजनों मे इ ई ए ऐ ओ या औ की मात्रा होती है उनमें चंद्र बिंदु की जगह केवल बिंदु का प्रयोग किया जाता है जैसे हिंदी, नींद, फेंका, गैंडा, गोंद और छौंकना इत्यादि। एक व्यंजन में एक समय में केवल ही मात्रा का प्रयोग किया जा सकता है। एक से अधिक मात्राओं का नहीं। ऊपर की बिंदी को अनुस्वार और दाहिनी ओर आने वाली बिंदी को विसर्ग कहते हैं।