{{KKRachna
|रचनाकार=सोहनलाल द्विवेदी
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<poem>
अलि रचो छंद
आज कण कण कनक कुंदन,
आज तृण तृण हरित चंदन,
आज क्षण क्षण चरण वंदन
विनय अनुनय लालसा है।
आज वासन्ती उषा है।
अलि रचो छंद
आज आई मधुर बेला,
अब करो मत निठुर खेला,
मिलन का हो मधुर मेला
आज अथरों में तृषा है।
आज वासंती उषा है।
अलि रचो छंद<br>आज कण कण कनक कुंदन, <br>आज तृण तृण हरित चंदन, <br>आज क्षण क्षण चरण वंदन <br>विनय अनुनय लालसा है। <br>आज वासन्ती उषा है। <br><br> अलि रचो छंद <br>आज आई मधुर बेला, <br> अब करो मत निठुर खेला, <br>मिलन का हो मधुर मेला <br>आज अथरों में तृषा है। <br>आज वासंती उषा है। <br><br> अलि रचो छंद <br>मधु के मधु ऋतु के सौरभ के, <br>उल्लास भरे अवनी नभ के, <br>जडजीवन का हिम पिघल चले <br>हो स्वर्ण भरा प्रतिचरण मंद<br>अलि रचो छंद। <br><br/poem>