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|रचनाकार=सोहनलाल द्विवेदी
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{{KKCatKavita}}<poem>नयनों की रेशम डोरी से<br>अपनी कोमल बरजोरी से। <br><br>
रहने दो इसको निर्जन में <br> बांधो मत मधुमय बन्धन में, <br> एकाकी ही है भला यहाँ, <br> निठुराई की झकझोरी से। <br><br>
अन्तरतम तक तुम भेद रहे, <br> प्राणों के कण कण छेद रहे। <br> मत अपने मन में कसो मुझे <br> इस ममता की गँठजोरी से। <br><br>
निष्ठुर न बनो मेरे चंचल <br> रहने दो कोरा ही अंचल, <br> मत अरूण करो हे तरूण किरण। <br> अपनी करूणा की रोरी से। <br><br/poem>
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