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'रक्त से छाने हुए इस राज्य को<br>
वज्र हो कैसे सकूँगा भोग मैं?<br>
आदमी के खून में यह है सना,<br>
और इसमें है लहू अभिमन्यु का.<br><br>
 
वज्र-सा कुछ टूटकर स्मृति से गिरा,<br>
दब गये कौन्तेय दुर्वह भार में.<br>
दब गयी वह बुद्धि जो अब तक रही<br>
खोजती कुछ तत्त्व रण के भस्म में।<br><br>