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|रचनाकार=सूरदास
}}
[[Category:पद]]<poem>आजु हौं एक-एक करि टरिहौं।
के तुमहीं के हमहीं, माधौ, अपुन भरोसे लरिहौं।
हौं तौ पतित सात पीढिन कौ, पतिते ह्वै निस्तरिहौं।
कत अपनी परतीति नसावत, मैं पायौ हरि हीरा।
सूर पतित तबहीं उठिहै, प्रभु, जब हँसि दैहौ बीरा।
</poem>
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