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|रचनाकार=सूरदास
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[[Category:पद]]
राग सारंग
<poem>
नीके रहियौ जसुमति मैया।
 
आवहिंगे दिन चारि पांच में हम हलधर दोउ भैया॥
 
जा दिन तें हम तुम तें बिछुरै, कह्यौ न कोउ `कन्हैया'।
 
कबहुं प्रात न कियौ कलेवा, सांझ न पीन्हीं पैया॥
 
वंशी बैत विषान दैखियौ द्वार अबेर सबेरो।
 
लै जिनि जाइ चुराइ राधिका कछुक खिलौना मेरो॥
 
कहियौ जाइ नंद बाबा सों, बहुत निठुर मन कीन्हौं।
 
सूरदास, पहुंचाइ मधुपुरी बहुरि न सोधौ लीन्हौं॥
 </poem>
भावार्थ :- `कह्यौ न कोउ कन्हैया' यहां मथुरा में तो सब लोग कृष्ण और यदुराज के नाम
प्रेम था,यह इस पंक्ति से स्पष्ट हो जाता है।राधा कहीं मेरा खिलौना न चुरा ले जाय,
कैसी बालको-चित सरलोक्ति है।
 
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