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यह मंदिर का दीप / महादेवी वर्मा
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16:07, 14 मई 2007
सांसों की समाधि सा जीवन,<br>
मसि-सागर का पंथ गया बन<br>
रुका मुखर कण-कण
क
स्पंदन,<br>
इस ज्वाला में प्राण-रूप फिर से ढलने दो!<br><br>
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Ramadwivedi