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सांसों की समाधि सा जीवन,<br>
मसि-सागर का पंथ गया बन<br>
रुका मुखर कण-कण स्पंदन,<br>
इस ज्वाला में प्राण-रूप फिर से ढलने दो!<br><br>
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