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मिलन / महादेवी वर्मा

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रजतकरों की मृदुल तूलिका
से ले तुहिनबिन्दु तुहिन-बिन्दु सुकुमार,
कलियों पर जब आँक रहा था
करूण कथा अपनी संसार;
तरल हृदय की उच्छ्वासें जबउच्छ्वास जब भोले मेघ लुटा जाते,
अन्धकार दिन की चोटों पर
अंजन बरसाने आते।आते!
मधु की बूदों में छ्लके जब
तारक लोकों के सुचि शुचि फूल,
विधुर हृदय की मृदु कम्पन सा
सिहर उठा वह नीरव कूल;
पीड़ा का साम्राज्य बस गया
उस दिन दूर क्षितिज के पार,
मिटना था निर्वाण जहांजहाँ
नीरव रोदन था पहरेदार!
कैसे कहती हो सपना है
अलि! उस मूक मिलन की बात?
भरे हुए अब तक फूलों सेमें
मेरे आँसू उनके हास!
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