|रचनाकार=सूरदास
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[[Category:पद]]
राग सारंग
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रे मन, राम सों करि हेत।
हरिभजन की बारि करिलै, उबरै तेरो खेत॥
मन सुवा, तन पींजरा, तिहि मांझ राखौ चेत।
काल फिरत बिलार तनु धरि, अब धरी तिहिं लेत॥
सकल विषय-विकार तजि तू उतरि सागर-सेत।
सूर, भजु गोविन्द-गुन तू गुर बताये देत॥
</poem>
भावार्थ :- यह जीवन क्षेत्र है, पर क्षणस्थायी है। इसकी यदि रखवाली करनी है, इसे