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विस्मृति / महादेवी वर्मा
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03:36, 25 अक्टूबर 2009
जहाँ बन्दी मुरझाया फूल
कली की हो ऐसी मुस्कान,
ओसकन
ओस कण
का छोटा आकार
छिपा जो लेता है तूफान;
तुम्हारी यह निस्तब्ध तरंग।
भग्न
भस्म
जिसमें हो जाता काल
तुम्हीं वह प्राणों का सन्यास,
लेखनी हो ऐसी विपरीत
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