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सच न बोलना / नागार्जुन

125 bytes removed, 07:15, 25 अक्टूबर 2009
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|रचनाकार=नागार्जुन
|संग्रह=हज़ार-हज़ार बाहों वाली / नागार्जुन
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<Poem>
मलाबार के खेतिहरों को अन्न चाहिए खाने को,
डंडपाणि को लठ्ठ चाहिए बिगड़ी बात बनाने को!
जंगल में जाकर देखा, नहीं एक भी बांस दिखा!
सभी कट गए सुना, देश को पुलिस रही सबक सिखा!
मलाबार के खेतिहरों को अन्न चाहिए खाने कोजन-गण-मन अधिनायक जय हो,<br>प्रजा विचित्र तुम्हारी हैडंडपाणि को लठ्ठ चाहिए बिगड़ी बात बनाने कोभूख-भूख चिल्लाने वाली अशुभ अमंगलकारी है!<br>जंगल बंद सेल, बेगूसराय में जाकर देखा, नौजवान दो भले मरेजगह नहीं एक भी बांस दिखा!<br>सभी कट गए सुनाहै जेलों में, देश को पुलिस रही सबक सिखा!<br><br>यमराज तुम्हारी मदद करे।
जन-गण-मन अधिनायक जय होख्याल करो मत जनसाधारण की रोज़ी का, रोटी का, प्रजा विचित्र तुम्हारी है<br>भूखफाड़-भूख चिल्लाने वाली अशुभ अमंगलकारी हैफाड़ कर गला, न कब से मना कर रहा अमरीका!<br>बंद सेल, बेगूसराय में नौजवान दो भले मरे<br>बापू की प्रतिमा के आगे शंख और घड़ियाल बजे!जगह नहीं है जेलों में, यमराज तुम्हारी मदद करे। <br><br>भुखमरों के कंकालों पर रंग-बिरंगी साज़ सजे!
ख्याल करो मत जनसाधारण की रोज़ी काज़मींदार है, रोटी कासाहुकार है, बनिया है, व्योपारी है,<br>फाड़अंदर-फाड़ कर गलाअंदर विकट कसाई, न कब से मना कर रहा अमरीकाबाहर खद्दरधारी है!<br>बापू की प्रतिमा के आगे शंख और घड़ियाल बजे!<br>सब घुस आए भरा पड़ा है, भारतमाता का मंदिरभुखमरों के कंकालों पर रंगएक बार जो फिसले अगुआ, फिसल रहे हैं फिर-फिर-बिरंगी साज़ सजेफिर!<br><br>
ज़मींदार हैछुट्टा घूमें डाकू गुंडे, साहुकार हैछुट्टा घूमें हत्यारे, बनिया है, व्योपारी है,<br>अंदर-अंदर विकट कसाईदेखो, बाहर खद्दरधारी हैहंटर भांज रहे हैं जस के तस ज़ालिम सारे!<br>सब घुस आए भरा पड़ा हैजो कोई इनके खिलाफ़ अंगुली उठाएगा बोलेगा, भारतमाता का मंदिर<br>एक बार जो फिसले अगुआ, फिसल रहे हैं फिर-फिर-काल कोठरी में ही जाकर फिरवह सत्तू घोलेगा!<br><br>
छुट्टा घूमें डाकू गुंडेमाताओं पर, छुट्टा घूमें हत्यारेबहिनों पर,<br>घोड़े दौड़ाए जाते हैं!देखोबच्चे, हंटर भांज रहे बूढ़े-बाप तक न छूटते, सताए जाते हैं जस के तस ज़ालिम सारे!<br>जो कोई इनके खिलाफ़ अंगुली उठाएगा बोलेगामार-पीट है, लूट-पाट है, तहस-नहस बरबादी है,<br>काल कोठरी में ही जाकर फिर वह सत्तू घोलेगाज़ोर-जुलम है, जेल-सेल है। वाह खूब आज़ादी है!<br><br>
माताओं पररोज़ी-रोटी, बहिनों हक की बातें जो भी मुंह परलाएगा, घोड़े दौड़ाए जाते हैं!<br>बच्चेकोई भी हो, बूढ़े-बाप तक न छूटते, सताए जाते हैंनिश्चय ही वह कम्युनिस्ट कहलाएगा!<br>मार-पीट हैनेहरू चाहे जिन्ना, लूट-पाट है, तहस-नहस बरबादी हैउसको माफ़ करेंगे कभी नहीं,<br>ज़ोर-जुलम हैजेलों में ही जगह मिलेगी, जेल-सेल है। वाह खूब आज़ादी हैजाएगा वह जहां कहीं! <br><br>
रोज़ी-रोटी, हक की बातें जो भी मुंह पर लाएगा,<br>कोई भी हो, निश्चय ही वह कम्युनिस्ट कहलाएगा!<br>नेहरू चाहे जिन्ना, उसको माफ़ करेंगे कभी नहीं,<br>जेलों में ही जगह मिलेगी, जाएगा वह जहां कहीं!<br><br> सपने में भी सच न बोलना, वर्ना पकड़े जाओगे,<br>भैया, लखनऊ-दिल्ली पहुंचो, मेवा-मिसरी पाओगे!<br>माल मिलेगा रेत सको यदि गला मजूर-किसानों का,<br>हम मर-भुक्खों से क्या होगा, चरण गहो श्रीमानों का!<br><br/poem>
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