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सोनिया समन्दर / नागार्जुन
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|रचनाकार=नागार्जुन
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<Poem>
सोनिया समन्दर
सामने
लहराता है
जहाँ तक नज़र जाती है,
सोनिया समन्दर !
बिछा है मैदान में
सोन ही सोना
सोना ही सोना
सोना ही सोना
गेहूँ की पकी फसलें तैयार हैं--
बुला रही हैं
खेतिहरों को
..."ले चलो हमें
खलिहान में--
घर की लक्ष्मी के
हवाले करो
ले चलो यहाँ से"
बुला रही हैं
गेहूँ की तैयार फसलें
अपने-अपने कॄषकों को...
'''
1983 में रचित
</poem>
अनिल जनविजय
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