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16:13, 26 अक्टूबर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=धर्मवीर भारती
}} <poem>गड़ने दो
यदि फाँसें गड़ी हैं उँगलियों में:
मुरली बनाने का यह है अनिवार्य क्रम!
फिर इन्हीं उँगलियों के मादक स्पर्शों से
बाजेगी मुरली फिर अपने अनियारे स्वर
नहीं, नहीं, वृथा नहीं गया
यह सारा श्रम!
</poem>