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बिनती भरत करत कर जोरे / तुलसीदास
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17:12, 26 अक्टूबर 2009
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|रचनाकार=तुलसीदास
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बिनती भरत करत कर जोरे।
दिनबन्धु दीनता दीनकी कबहुँ परै जनि भोरे॥१॥
तुलसी बीते अवधि प्रथम दिन जो रघुबीर न ऐहौ।
तो प्रभु-चरन-सरोज-सपथ जीवत परिजनहि न पैहौ॥४॥
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