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मनोहरताको मानो ऐन / तुलसीदास

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|रचनाकार=तुलसीदास
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मनोहरताको मानो ऐन।
स्यामल गौर किसोर पथिक दोउ सुमुखि! निरखि भरि नैन॥
सुनि सुचि सरल सनेह सुहावने ग्राम-बधुन्हके बैन।
तुलसी प्रभु तरुतर बिलँबे किए प्रेम कनौडे कै न ?
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