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{{KKRachna
|रचनाकार=तुलसीदास
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सखि नीके कै निरखि कोऊ सुठि सुंदर बटोही।
मधुर मूरति मदनमोहन जोहन जोग,
तुलसी रही है ठाढ़ी पाहन गढ़ी-सी काढ़ी,
कौन जाने कहा तै आई कौन की को ही॥४॥
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