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सखि! रघुनाथ-रूप निहारु / तुलसीदास
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18:14, 26 अक्टूबर 2009
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|रचनाकार=तुलसीदास
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सखि! रघुनाथ-रूप निहारु।
सरद-बिधु रबि-सुवन मनसिज-मानभंजनिहारु॥
सकल अंग अनूप नहिं कोउ सुकबि बरननिहारु।
दास तुलसी निरखतहि सुख लहत निरखनिहारु॥
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