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बच्चों सा / राजीव रंजन प्रसाद

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<poem>मैं अपने सब्र की शरारत से हैरां हूँ
इतना बड़ा पत्थर कलेजे पर ढो लाया
और अब टूटे हुए कलेजे पर
टूटे हुए खिलौने सा रूठता है..
बच्चों-सा

७.१२.१९९५

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