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क्रम / अशोक चक्रधर
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04:17, 28 अक्टूबर 2009
|रचनाकार=अशोक चक्रधर
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एक अंकुर फूटा
पेड़ की जड़ के पास ।
एक किल्ला फूटा
फुनगी पर ।
अंकुर बढ़ा
जवान हुआ,
किल्ला पत्ता बना
सूख गया ।
गिरा
उस अंकुर की
जवानी की गोद में
गिरने का ग़म गिरा
बढ़ने के मोद में ।
</poem>
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