|संग्रह=खिलखिलाहट / काका हाथरसी
}}
{{KKCatKavita}}<poem>लुट जाने का डर था उसका<br>आबादी में घर था उसका<br>उस बस्ती में जीना कैसा<br>मरना भी दूभर था उसका<br>दिल की बातें खाक समझता<br>दिल भी तो पत्थर था उसका<br>उड़ने में ही था जो बाधक<br>अपना घायल पर था उसका<br>रहता था वो डरा-डरा सा<br>
कहने को तो घर था उसका
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