|संग्रह=काका के प्रहसन / काका हाथरसी
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{{KKCatKavita}} <poem>‘काका’ से कहने लगे, शिवानंद आचार्य<br>रोना-धोना पाप है, हास्य पुण्य का कार्य<br>हास्य पुण्य का कार्य, उदासी दूर भगाओ<br>रोग-शोक हों दूर, हास्यरस पियो-पिलाओ<br>क्षणभंगुर मानव जीवन, मस्ती से काटो<br>मनहूसों से बचो, हास्य का हलवा चाटो<br>आमंत्रित हैं, सब बूढ़े-बच्चे, नर-नारी<br>
‘काका की चौपाल’ प्रतीक्षा करे तुम्हारी
</poem>