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माला / नीलेश रघुवंशी

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}}
{{KKCatKavita}}<Poempoem>मैं माला फेरन फेरना चाहती हूँ
सामने दिख रहे झाड़ के नाम की...
नदी के नाम की जिसका पानी पिया...
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