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माला / नीलेश रघुवंशी
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Poem
poem
>मैं माला
फेरन
फेरना
चाहती हूँ
सामने दिख रहे झाड़ के नाम की...
नदी के नाम की जिसका पानी पिया...
अनिल जनविजय
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