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रिश्ते / कविता किरण
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13:50, 31 अक्टूबर 2009
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<poem>
रिश्ते!
गीली लकड़ी की तरह
सुलगते रहते हैं
सारी उम्र।
कड़वा कसैला धुँआ
उगलते रहते हैं।
पर कभी भी जलकर भस्म नही होते
ख़त्म नही होते।
सताते हैं जिंदगी भर
किसी प्रेत की तरह!
</poem>
अनिल जनविजय
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