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अहेरी / अचल वाजपेयी

25 bytes added, 18:30, 31 अक्टूबर 2009
{{KKRachna
|रचनाकार=अचल वाजपेयी
|संग्रह=शत्रु-शिविर तथा अन्य कविताएँ / अचल वाजपेयी}}{{KKCatKavita}}<poem>
मैंने भोर की धूप को
 
कुछ पल देखा
 
फिर उसके गुलाब झर गए
 
आसावरी थम गई
 
मेरे अन्तर्मन
 
न जाने क्यों तुम में
 
एक अहेरी प्रभाव रहता है
</poem>
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