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04:07, 1 नवम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सियाराम शरण गुप्त
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}<poem>संतुष्ट आक पर नित्य रहो सहर्ष,
हे ग्रीष्म, संतत करो उसका प्रकर्ष।
है कौन हेतु, पर हो कर जो कराल,
हो नष्ट भ्रष्ट करते तुम थे तमाल</poem>