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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सियाराम शरण गुप्त |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}}<poem>संतुष्ट आ…
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{{KKRachna
|रचनाकार=सियाराम शरण गुप्त
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita‎}}<poem>संतुष्ट आक पर नित्य रहो सहर्ष,
हे ग्रीष्म, संतत करो उसका प्रकर्ष।
है कौन हेतु, पर हो कर जो कराल,
हो नष्ट भ्रष्ट करते तुम थे तमाल</poem>
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