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बहुत कुछ नक्षत्रों के ज्ञान पर निर्भर करता है
नक्षत्र हैं तो उनकी स्थिति बताने वाला ज्‍योतिष शास्‍त्र है
ज्‍योतिष है तो उसे पढ़ने समझने वाले ज्‍योतिषि हैं
ज्‍योतिषि हैं तो उनकी दक्षिणा है और उस पर टिका
उनका खाता पीता परिवार है
मतलब कि नक्षत्रों की स्थिति पर निर्भर करता
एक भरा पूरा संसार है
नक्षत्रों को लेकर बहुत सावधान रहते थे पिता
कभी यात्रा पर निकलते
तो ज्‍योतिषि से साइत जरूर निकलवाते
उनकी अटूट श्रद्धा थी ज्‍योतिष के ज्ञान पर
मज़े की बात ये कि जब भी पिता
यात्रा पर निकलने को होते
तो उसी आस पास ज्‍योतिष
अच्‍छी तिथि निकाल देते
बहुत कुछ नक्षत्रों के ज्ञान एक बार दूर की यात्रा पर निर्भर करता है<br>तिथि निकलवा करनक्षत्र हैं तो टिकट लिया था पिता नेपर बंगाल से आने वाली उनकी स्थिति बताने वाला ज्‍योतिष शास्‍त्र है<br>ट्रेनज्‍योतिष है तो उसे पढ़ने समझने वाले ज्‍योतिषि हैं<br>बाढ के कारण नियत समय से विलंब से आईज्‍योतिषि हैं तो उनकी दक्षिणा है और उस पर टिका <br>तब तक तिथि बदल चुकी थीउनका खाता पीता परिवार है<br>व्‍यापार का मामला था घाटा लग सकता थामतलब सो पंडित जी की बातों को याद करलौट गये पिताऔर व्‍यापार का ठेका किसी और को मिल गयापर पिता खुश थे कि नक्षत्रों कौन जाने पंडित जी की स्थिति बात ना मान जाने पर निर्भर करता<br>कोईएक भरा पूरा संसार है<br><br>बडी दुर्घटना हो जाती
नक्षत्रों को लेकर बहुत सावधान रहते थे पिता<br>एक बार वृद्ध नाना जी की बीमारी की ख़बर सुनकभी यात्रा पर निकलते<br>तो ज्‍योतिषि से साइत जरूर निकलवाते<br>उनकी अटूट श्रद्धा थी ज्‍योतिष मायके जाने को बेचैन माँ के ज्ञान पर<br>मज़े जाने की बात ये कि जब भी पिता <br>साइत निकालने कोयात्रा पर निकलने ज्‍योतिषि जी को होते <br>बुलाया गयातो उसी पर पूरब में जाने की आस पास ज्‍योतिष <br>कोई अच्‍छी तिथि निकाल देते<br><br>नहीं थीपर नाना जी की मौत शायदसाइत के लिए नहीं रूकतीसो ज़्यादा विरोध ना कर पिता ने माँ को जाने दिया
एक बार दूर की यात्रा पर तिथि निकलवा कर<br>टिकट लिया था पिता ने<br>पर बंगाल से आने वाली उनकी ट्रेन<br>बाढ के कारण नियत समय से विलंब से आई<br>और तब तक तिथि बदल चुकी थी<br>व्‍यापार का मामला था घाटा लग सकता था<br>सो पंडित जी की बातों को याद कर<br>लौट गये पिता <br>और व्‍यापार का ठेका किसी और को मिल गया<br>पर पिता खुश थे कि कौन जाने <br>पंडित जी की बात ना मान जाने पर कोई<br>बडी दुर्घटना हो जाती<br><br> एक बार वृद्ध नाना जी की बीमारी की ख़बर सुन<br>मायके जाने को बेचैन माँ के जाने की साइत निकालने को<br>ज्‍योतिषि जी को बुलाया गया<br>पर पूरब में जाने की आस पास कोई अच्‍छी तिथि नहीं थी<br>पर नाना जी की मौत शायद<br>साइत के लिए नहीं रूकती<br>सो ज़्यादा विरोध ना कर पिता ने माँ को जाने दिया<br><br> आखिर नाना जी की मृत्‍यु हो गई<br>और माँ ख़ुश थी कि अगर वह ज्‍योतिषि जी के कहे अनुसार<br>विदा न होती तो नाना जी को आख़िरी बार <br>नहीं देख पाती<br>पंडित जी का तर्क था कि अशुभ साइत में जाने से <br>नाना जी असमय काल कवलित हो गए<br>
और पिता खुश थे ज्‍योतिषि जी के ज्ञान पर।
</poem>
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