|रचनाकार=अजित कुमार
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अपने घर में जो बाबूजी
रद्दी काग़ज़ की चिर्री–पुर्जी भी
सहेज के रखते थे–
इस्तरी के लिए गए कपड़ों
या दूधवाले का हिसाब दर्ज़ करने के लिए…
वे अस्पताल में दाखिल क्या हुए
कि टिशू पेपर के रोल पर रोल
नाक-थूक-छींक-लार पोंछने के बहाने
कूडे़ की टोकरी में बहाते चले गए।
वहाँ अपने ठहरने की भरपूर क़ीमत
उन्हें वसूल करनी थी।
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