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ब्याह की शाम / अजित कुमार

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|संग्रह=अकेले कंठ की पुकार / अजित कुमार
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ब्याह की यह शाम,
 
आधी रात को भाँवर पड़ेंगी।
 
आज तो रो लो तनिक, सखि।
 
गूँजती हैं ढोलकें-
 
औ’ तेज़ स्वर में चीख़ते-से है ख़ुशी के गीत ।
 
बन्द आँखों को किए चुपचाप,
 
सोचती होगी कि आएंगे नयन के मीत ।
 
सज रहे होंगे अधर पर हास ,
 
उठ रहे होंगे ह्रदय में आश औ’ विश्वास के आधार ।
 
नाचते होंगे पलक पर-
 
दो दिनों के बाद के-- आलिंगनों के, चुम्बनों के वे सतत व्यापार
 
ज़िन्दगी के घोर अनियम में, अनिश्चय में
 
नहीं है मानते जो हार।
 
किन्तु संध्या की उदासी मिट नहीं पाती,
 
बजें कितने खुशी के गीत ।
 
और जीवन के अनिश्चय बन न पाते कभी निश्चय ,
 
हाय । क्रम इस ज़िन्दगी के --साध के विपरीत।
 
साँवली इस शाम की परछाइयाँ कुछ देर में
 
आकाश पर तारे जड़ेंगी,
 
अश्रुओं के तारकों को तुम संजो लो ।
 
आज तो रो लो तनिक सखि,
 
ब्याह की यह शाम ,
 
आधी रात को भाँवर पड़ेंगी ।
 
किसी सूनी कोठरी में बैठकर तुम,
 
दो क्षणों को ध्यान प्रिय का छोड़-
 
व्यस्त घर के शोर औ’ हलचल भरे
 
वातावरण में डूब जाओगी
 
मनोरम स्वप्न-गढ को तोड़।
 
लोकलज्जा से बंधा तन, रोक देगा पथ तुम्हारा,
 
काम करने को बढेंगे चपल चरण अधीर ।
 
तुम सिमटकर अनमनी-सी बैठ जाओगी,
 
घुलाती मोद के वातावरण में एक बेसुध पीर ।
 
द्वार पर बजती हुई शहनाइयों की गूँज भी मिट जाएगी…
 
उस शाम के बढते अंधेरे में, अकेली कोठरी में,
 
कौन जाने किन दिनों की बात तुमको घेर लेगी।
 
चित्र बीती ज़िन्दगी के,
 
या विहँसती भाँवरों की रात के, सौ बार नाचेंगे ।
 
कि दुनिया प्यार की अनजान रंगों में सजेगी ।
 
शाम की खामोश छायाएँ –-
 
कंकरियां बन पलक में आ गड़ेंगी ।
 
चलो उठकर आँख तो धो लो तनिक, सखि ।
 
आज तो रो लो तनिक, सखि।
 
ब्याह की यह शाम,
 
आधी रात को भाँवर पड़ेंगी।
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