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विशाल काया में / अजित कुमार
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15:40, 1 नवम्बर 2009
|संग्रह=ये फूल नहीं / अजित कुमार
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क्रोधित दानवों जैसी बसें घरघराती है
भीड़ें हरहरा कर टूटती है उनपे ।
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