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|रचनाकार=अज्ञेय
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<poem>
किसी का सत्य था,
मैंने संदर्भ में जोड़ दिया ।
कोई मधुकोष काट लाया था,
मैंने निचोड़ लिया ।
किसी का सत्य था,<br>की उक्ति में गरिमा थीमैंने संदर्भ में जोड़ उसे थोड़ा-सा संवार दिया ।<br>,कोई मधुकोष काट लाया किसी की संवेदना में आग का-सा ताप था,<br>मैंने निचोड़ लिया दूर हटते-हटते उसे धिक्कार दिया <br><br>
किसी की उक्ति में गरिमा थी<br>कोई हुनरमन्द था:मैंने उसे थोड़ा-सा संवार दियादेखा और कहा,<br>'यों!'किसी की संवेदना में आग काथका भारवाही पाया -सा ताप था<br>मैंने दूर हटते-हटते उसे धिक्कार घुड़का या कोंच दिया ।<br><br>, 'क्यों!'
कोई हुनरमन्द था:<br>किसी की पौध थी,मैंने देखा सींची और कहा, 'यों!'<br>बढ़ने पर अपना ली।थका भारवाही पाया -<br>घुड़का या कोंच दियाकिसी की लगाई लता थी, 'क्यों!'<br><br>मैंने दो बल्ली गाड़ उसी पर छवा ली ।
किसी की पौध कली थी,<br>मैंने सींची और बढ़ने पर अपना ली।<br>अनदेखे में बीन ली,किसी की लगाई लता बात थी,<br>मैंने दो बल्ली गाड़ उसी पर छवा मुँह से छीन ली ।<br><br>
किसी की कली थी<br>मैंने अनदेखे में बीन ली,<br>किसी की बात थी<br>मैंने मुँह से छीन ली ।<br><br> यों मैं कवि हूँ, आधुनिक हूँ, नया हूँ:<br>काव्य-तत्त्व की खोज में कहाँ नहीं गया हूँ ?<br>चाहता हूँ आप मुझे<br>एक-एक शब्द पर सराहते हुए पढ़ें ।<br>पर प्रतिमा--अरे, वह तो<br>जैसी आप को रुचे आप स्वयं गढ़ें ।<br><br/poem>
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