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अच्छा खंडित सत्य / अज्ञेय

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|संग्रह=अरी ओ करुणा प्रभामय / अज्ञेय
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<poem>
अच्छा
खंडित सत्य
सुघर नीरन्ध्र मृषा से,
अच्छा
पीड़ित प्यार सहिष्णु
अकम्पित निर्ममता से।
अच्छा <br>खंडित सत्य<br>अच्छी कुण्ठा रहित इकाई सुघर नीरन्ध्र मृषा साँचे-ढले समाज से,<br>अच्छा<br> पीड़ित प्यार सहिष्णु <br>अपना ठाठ फ़क़ीरी अकम्पित निर्ममता मँगनी के सुख-साज से।<br><br>
अच्छी कुण्ठा रहित इकाई <br>अच्छा साँचेसार्थक मौन व्यर्थ के श्रवण-ढले समाज से,<br>मधुर भी छन्द से। अच्छा <br> अपना ठाठ फ़क़ीरी<br>निर्धन दानी का उघडा उर्वर दुख मँगनी धनी सूम के सुखबंझर धुआँ-साज घुटे आनन्द से।<br><br>
अच्छा <br>सार्थक मौन<br>व्यर्थ के श्रवण-मधुर भी छन्द से।<br>अच्छा <br>निर्धन दानी का उघडा उर्वर दुख<br>धनी सूम के बंझर धुआँ-घुटे आनन्द से।<br><br>  अच्छे <br> अनुभव की भट्टी में तपे हुए कण-दो कण<br>अन्तर्दृष्टि के, <br> झूठे नुस्खे वाद, रूढि़, उपलब्धि परायी के प्रकाश से<br>रूप-शिव, रूप सत्य की सृष्टि के। <br><br/poem>
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