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रश्मिरथी / प्रथम सर्ग / भाग 2
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09:03, 3 नवम्बर 2009
निज समाधि में निरत, सदा निज कर्मठता में चूर,
वन्यकुसुम-सा खिला
कर्ण,
जग की आँखों से दूर।
विकास
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