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सम्पराय / अज्ञेय

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|संग्रह=कितनी नावों में कितनी बार / अज्ञेय
}}
{{KKCatKavita}}<poem>
हाँ, भाई, <br>
वह राह <br>
अनजाने—यद्यपि वांछित—सम्पराय: <br>
हम होते ही रहते हैं वहाँ पार!' <br> <br>
</poem>
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